सतना। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का सपना था - "हवाई चप्पल पहनने वाला भी हवाई यात्रा कर सके।" इसी सपने को साकार करने के लिए 31 मई को सतना एयरपोर्ट का वर्चुअल लोकार्पण हुआ, जिसमें 7 आदिवासी महिलाओं को मुफ्त में हवाई सफर का अनुभव भी कराया गया। लेकिन, लोकार्पण के महज दूसरे दिन ही इस सपने पर ग्रहण लग गया। एयरपोर्ट बंदरगाह पर कोई यात्री नहीं आया, और फ्लाइट को रद्द करना पड़ा। एक शानदार शुरुआत के बाद यह खालीपन कई सवाल खड़े कर रहा है।
उत्साह का दिन: लोकार्पण और आदिवासी महिलाओं की पहली उड़ान
- युद्धकालीन पट्टी से आधुनिक एयरपोर्ट: सतना एयरपोर्ट द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान बनी एक पुरानी हवाई पट्टी को विकसित करके बनाया गया है। करीब 37 करोड़ रुपये की लागत से तैयार हुए इस एयरपोर्ट का लोकार्पण खुद पीएम मोदी ने वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए किया।
- सपने को उड़ान: "हवाई चप्पल वाला भी उड़ान भरे" के संकल्प को चरितार्थ करते हुए, लोकार्पण के दिन ही 7 आदिवासी महिलाओं को पहली मुफ्त फ्लाइट का अनुभव कराया गया। यह क्षण उनके लिए अविस्मरणीय था। उत्साह से लबालब इन महिलाओं ने लोकगीत गाकर प्रधानमंत्री का आभार भी व्यक्त किया।
- शुरुआती योजना: लोकार्पण के तुरंत बाद, 1 जून से सतना एयरपोर्ट से नियमित हवाई सेवा शुरू होने की घोषणा की गई थी। उम्मीद थी कि शहर और आसपास के इलाकों के लोग इस नए कनेक्टिविटी साधन का लाभ उठाएंगे।
दूसरा दिन: सन्नाटा और निराशा
- एक भी यात्री नहीं: 1 जून, लोकार्पण के अगले ही दिन, सतना एयरपोर्ट पर एक अजीबोगरीब सन्नाटा पसरा रहा। पूरे दिन एक भी यात्री हवाई यात्रा के लिए बुकिंग कराने या एयरपोर्ट पहुंचा नहीं।
- फ्लाइट रद्द: कोई बुकिंग न होने के कारण उस दिन की फ्लाइट को मजबूरन कैंसिल कर दिया गया। यह क्षण एयरपोर्ट स्टाफ और स्थानीय प्रशासन के लिए काफी निराशाजनक रहा। सारी तैयारियां, सारा उत्साह, एक खाली रनवे और शांत टर्मिनल बिल्डिंग के सामने धराशायी हो गया।
- एयरपोर्ट डायरेक्टर की बातचीत: सतना एयरपोर्ट के निदेशक अशोक गुप्ता ने इस स्थिति की पुष्टि करते हुए बताया, "1 जून को हवाई सेवा की कोई भी बुकिंग सामने नहीं आई। दूसरे दिन फ्लाइट कैंसिल थी।" उन्होंने यह भी कहा कि सेवा 2 जून (मंगलवार) से पुनः शुरू की गई है, लेकिन उस दिन भी बुकिंग की स्थिति अनिश्चित थी।
चुनौतियां और सवाल
- रनवे की कमी - बड़ी समस्या: सतना एयरपोर्ट की सबसे बड़ी तकनीकी चुनौती इसका छोटा रनवे है। योजना 1800 मीटर के रनवे की थी, लेकिन यह महज 1200 मीटर का ही बन पाया है। यह लंबाई बड़े विमानों, खासकर 19 सीटर विमानों (जिनके उतरने की घोषणा की गई थी) के लिए अपर्याप्त है। लोकार्पण के दिन भी सिर्फ एक छोटा 6 सीटर विमान ही उतर सका।
- भविष्य की उम्मीद? केंद्रीय उड्डयन मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया ने इस मुद्दे को स्वीकार करते हुए कहा था कि रनवे को जल्द ही बढ़ाया जाएगा। हालांकि, यह "जल्द" कब होगा, यह स्पष्ट नहीं है।
- यात्री क्यों नहीं? यह सवाल सबसे महत्वपूर्ण है। क्या कारण है कि लोकार्पण के उत्साह के बावजूद कोई यात्री नहीं आया?
- जागरूकता की कमी? क्या आम जनता, खासकर संभावित यात्रियों को नई सेवा के बारे में पर्याप्त जानकारी नहीं मिली?
- कनेक्टिविटी का अभाव? क्या शुरुआत में ही उपयुक्त गंतव्यों (जैसे दिल्ली, भोपाल, प्रयागराज) के लिए पर्याप्त और सुविधाजनक फ्लाइट्स नहीं हैं?
- लागत? क्या टिकट की कीमतें स्थानीय लोगों की पहुंच से बाहर हैं?
- विकल्पों की उपलब्धता? क्या लोग रेल या सड़क मार्ग को ही अधिक व्यवहारिक मान रहे हैं?
फिर से उड़ान भरने की कोशिश
1 जून की निराशा के बाद, 2 जून (मंगलवार) से सतना एयरपोर्ट पर हवाई सेवा फिर से शुरू कर दी गई है। यह एक नई शुरुआत है। एयरपोर्ट प्रबंधन और एयरलाइंस को अब इस बात पर गंभीरता से विचार करने की जरूरत है कि यात्रियों को कैसे आकर्षित किया जाए।
क्या यह छोटा एयरपोर्ट अपने उद्देश्य को पूरा कर पाएगा? क्या "हवाई चप्पल वाला" वास्तव में नियमित रूप से यहां से उड़ान भर पाएगा? इन सवालों के जवाब समय के साथ ही मिलेंगे। सतना एयरपोर्ट का यह शुरुआती झटका याद दिलाता है कि बुनियादी ढांचे का निर्माण करना और उसे सफलतापूर्वक चलाना दो अलग-अलग चुनौतियां हैं। अब सतना एयरपोर्ट को सिर्फ रनवे की लंबाई ही नहीं, बल्कि यात्री संख्या बढ़ाने की भी लंबी दूरी तय करनी है।
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