दो सगे भाइयों ने एक ही युवती से की शादी, हिमाचल में हुआ अनोखा विवाह समारोह
एक साथ दो दूल्हे और एक दुल्हन, परंपरा और प्रेम का अनूठा मेल
हिमाचल प्रदेश के एक छोटे से गाँव में एक ऐसी शादी ने सबका ध्यान खींचा है, जहाँ दो सगे भाइयों ने एक ही युवती के साथ सात फेरे लिए। यह अनोखा विवाह समारोह सामाजिक परंपराओं और आधुनिक सोच के बीच एक नया अध्याय जोड़ता है। इस शादी ने न केवल स्थानीय लोगों को हैरान किया, बल्कि सोशल मीडिया पर भी चर्चा का विषय बन गया।
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फोटो सोर्स (patrika) |
क्या है पूरा मामला?
हिमाचल प्रदेश के किन्नौर जिले के एक दूरस्थ गाँव में रहने वाले दो भाइयों ने एक ही लड़की से शादी की। यह प्रथा स्थानीय रीति-रिवाजों से जुड़ी हुई है, जहाँ कभी-कभी परिवार की संपत्ति और सदस्यों की देखभाल के लिए ऐसी शादियाँ होती हैं। हालाँकि, आधुनिक समय में ऐसे विवाह दुर्लभ हो गए हैं, लेकिन कुछ समुदायों में यह प्रथा अभी भी जीवित है।
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क्यों एक साथ दो भाइयों ने की शादी?
इस शादी के पीछे का मुख्य कारण परिवार की आर्थिक और सामाजिक स्थिरता बनाए रखना है। दोनों भाइयों के परिवार ने तय किया कि अगर वे एक ही लड़की से शादी करेंगे, तो परिवार की जमीन और संसाधन बँटेंगे नहीं। इसके अलावा, परिवार के सदस्यों की देखभाल भी आसान होगी। दुल्हन ने भी इस प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया, क्योंकि उसका परिवार भी इस रिवाज से सहमत था।
शादी की रस्में और समारोह
शादी का समारोह पारंपरिक तरीके से हुआ, जिसमें दोनों भाइयों ने एक साथ दुल्हन के साथ सात फेरे लिए। स्थानीय लोगों के अनुसार, ऐसी शादियों में दोनों पतियों के अधिकार और जिम्मेदारियाँ बराबर होती हैं। दुल्हन ने भी दोनों के साथ विवाह के सभी रीति-रिवाज पूरे किए।
कानूनी और सामाजिक पहलू
भारतीय कानून के अनुसार, एक पत्नी के एक से अधिक पति होने की प्रथा को मान्यता नहीं दी गई है। हालाँकि, कुछ आदिवासी और पहाड़ी समुदायों में यह प्रथा सदियों से चली आ रही है। स्थानीय लोग इसे अपनी संस्कृति का हिस्सा मानते हैं और इसमें किसी तरह की कोई गलत बात नहीं देखते।
लोगों की प्रतिक्रिया
इस शादी को लेकर सोशल मीडिया पर मिश्रित प्रतिक्रियाएँ आईं। कुछ लोगों ने इसे पुरानी परंपरा का हिस्सा बताया, तो कुछ ने सवाल उठाए कि क्या यह महिला के अधिकारों के खिलाफ है। हालाँकि, दुल्हन और उसके परिवार ने स्पष्ट किया कि यह उनकी सहमति से हुआ फैसला है और वे इससे खुश हैं।
निष्कर्ष
यह शादी समाज के सामने एक बड़ा सवाल खड़ा करती है—क्या पारंपरिक प्रथाओं को आधुनिक कानून के साथ जोड़ा जा सकता है? जहाँ एक ओर यह विवाह सांस्कृतिक विविधता को दर्शाता है, वहीं दूसरी ओर यह महिलाओं की सहमति और उनके अधिकारों पर भी बहस छेड़ता है।
क्या आपको लगता है कि ऐसी प्रथाओं को आज के समय में स्वीकार किया जाना चाहिए? अपनी राय कमेंट में जरूर बताएँ।
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