मध्यप्रदेश के सिवनी जिले में एक चौंकाने वाला घोटाला सामने आया है, जिसमें 47 लोगों को 279 बार "मृत" घोषित करके प्राकृतिक आपदा राहत कोष से 11 करोड़ 26 लाख रुपये की बंदरबांट की गई। यह घोटाला साल 2019 से 2022 के बीच केवलारी तहसील कार्यालय में अंजाम दिया गया, जहां क्लर्क सचिन दहायत और उसके साथियों ने नकली मृत्यु प्रमाणपत्र बनाकर सरकारी धन हड़प लिया।
घोटाले की कार्यप्रणाली: कैसे काम करता था 'सांप का जादू'
आरोपियों ने लोगों की मौत को "सांप के काटने", "डूबने" और "बिजली गिरने" जैसे कारणों से जोड़कर झूठे दस्तावेज तैयार किए। हर मृतक के परिवार को 4 लाख रुपये की सहायता राशि मिलती थी, लेकिन यह पैसा घोटालेबाजों के रिश्तेदारों और परिचितों के खातों में जमा करवा लिया जाता था।
- रिपीट मौतों का खेल: एक व्यक्ति को 28 बार सांप काटने से मरवाया गया, तो एक महिला द्वारका बाई को 29 बार "मृत" घोषित किया गया। हैरानी की बात यह कि इनमें से कई नाम वास्तविक लोगों के नहीं थे।
- कागजी खेल: मृतकों की सूची में 70 वर्षीय संत कुमार का नाम भी शामिल था, जो वास्तव में जीवित हैं।
घोटाले का खुलासा: ऑडिट ने किया पर्दाफाश
नवंबर 2022 में राजस्व विभाग की ऑडिट टीम ने पाया कि केवलारी तहसील में 279 मृतकों के नाम पर राहत राशि जारी की गई, लेकिन यह पैसा सिर्फ 47 लोगों के खातों में पहुंचा। जांच में पता चला कि:
- द्वारका बाई और श्रीराम जैसे नकली चरित्र बनाए गए।
- कई मामलों में पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट और मृत्यु प्रमाणपत्र गायब थे।
राजनीतिक आरोप-प्रत्यारोप: कांग्रेस vs BJP
घोटाले ने राज्य की राजनीति को गरमा दिया है। कांग्रेस नेता जीतू पटवारी ने प्रेस कॉन्फ्रेंस करके मुख्यमंत्री मोहन यादव पर निशाना साधा:
- "मोहन यादव के राज में एक व्यक्ति को 38 बार सांप काटा गया। 55 जिलों का हिसाब लगाएं तो घोटाले का आकार भयावह होगा!"
- उन्होंने आरोप लगाया कि आस्तीन के सांप (भ्रष्ट अधिकारी) सरकारी तंत्र को लूट रहे हैं।
वहीं, प्रशासन ने कार्रवाई का दावा करते हुए बताया कि:
- मुख्य आरोपी सचिन दहायत को बर्खास्त कर दिया गया।
- 37 आरोपियों में से 21 गिरफ्तार हो चुके हैं।
प्रशासन की प्रतिक्रिया: कार्रवाई या दिखावा?
कलेक्टर संस्कृति जैन के अनुसार, घोटाले की जांच पूरी हो चुकी है और वित्त विभाग ने रिपोर्ट सौंप दी है। हालांकि, सवाल यह उठ रहे हैं:
- 2019 से 2022 तक घोटाला कैसे चलता रहा?
- क्या सिर्फ एक क्लर्क इतने बड़े घोटाले का मास्टरमाइंड हो सकता है?
- मृतकों की पुष्टि करने वाले चिकित्सा अधिकारी और तहसीलदारों की भूमिका क्या थी?
पीड़ितों की कहानियां: कागजों पर मरते-जीते लोग
- द्वारका बाई: गांव वालों ने बताया कि उनके पते पर कोई महिला रहती ही नहीं।
- संत कुमार: 70 साल के बुजुर्ग को मृत बताया गया, जबकि वह सेहतमंद हैं।
- अनाम पीड़ित: कई मामलों में घोटालेबाजों ने काल्पनिक नामों का इस्तेमाल किया।
सवाल जो अब भी अनुत्तरित हैं
1. क्या यह घोटाला सिर्फ सिवनी तक सीमित है या पूरे मध्यप्रदेश में फैला हुआ है?
2. 4 लाख रुपये की राशि पर अंकुश लगाने के लिए सरकार ने क्या नियम बनाए?
3. क्या प्राकृतिक आपदा कोष की निगरानी प्रणाली में सुधार होगा?
निष्कर्ष: एक घोटाला जो व्यवस्था पर सवाल खड़े करता है
मध्यप्रदेश का 'सांप घोटाला' सिर्फ भ्रष्टाचार की कहानी नहीं, बल्कि प्रशासनिक लापरवाही और राजनीतिक मिलीभगत का प्रतीक है। जब तक डिजिटल पारदर्शिता, कड़े ऑडिट और जनता की जागरूकता नहीं बढ़ेगी, ऐसे घोटाले दोबारा होंगे।