मध्यप्रदेश के जबलपुर में स्थानीय निधि संपरीक्षा कार्यालय के एक क्लर्क संदीप शर्मा ने सॉफ्टवेयर हैकिंग और धोखाधड़ी से 7 करोड़ रुपये से अधिक का गबन किया। इस मामले में संदीप के साथ उसके परिवार के 4 सदस्यों को भी गिरफ्तार किया गया है, जबकि कार्यालय के कुछ अधिकारी अभी भी फरार हैं।
सैलरी में '44 हज़ार' से '4.44 लाख' कैसे पहुंचा?
डिजिटल हैकिंग का 'शातिर' तरीका- मूल वेतन: संदीप की मासिक सैलरी 44,000 रुपये थी।
- सॉफ्टवेयर में छेड़छाड़: उसने सैलरी सिस्टम के सॉफ्टवेयर में एक एक्स्ट्रा डिजिट '4' जोड़कर अपनी सैलरी 4,44,000 रुपये प्रति माह कर दी।
- कुल गबन: यह फर्जीवाड़ा कई महीनों तक चला और इससे 56.58 लाख रुपये हड़पे गए।
गबन के 4 प्रमुख स्रोत
संदीप ने सिर्फ सैलरी नहीं, बल्कि विभिन्न योजनाओं के फंड्स को भी निशाना बनाया:1. अनधिकृत आहरण: 95.23 लाख रुपये का गैर-कानूनी निकासी।
2. अवकाश निधि और बीमा योजना: 4.69 करोड़ रुपये को परिवार के खातों में ट्रांसफर किया।
3. परिवार कल्याण निधि: 57.87 लाख रुपये का दुरुपयोग।
4. सहकर्मी के खाते में फर्जी भुगतान: अनूप कुमार बौरिया के नाम पर 28,008 रुपये के बजाय 2.53 लाख रुपये जारी किए।
परिवार की भूमिका: पत्नी, माँ, सास और बहन भी शामिल
- खातों का इस्तेमाल: गबन की रकम संदीप ने अपनी पत्नी स्वाति, माँ पूनम, सास मेनुका और बहन श्वेता के खातों में ट्रांसफर की।
- सम्पत्ति खरीदी: इस पैसे से उसने महंगे मकान, कारें और अन्य संपत्तियां खरीदीं, जिन्हें पुलिस ने जब्त कर लिया है।
गिरफ्तारी और जब्ती
- 5 आरोपी पकड़े गए: संदीप समेत उसके 4 परिवारीजनों को ओमती थाना पुलिस ने हिरासत में लिया।
- इनाम की घोषणा: संदीप पर पुलिस ने 20,000 रुपये का इनाम रखा था।
फरार आरोपियों पर नजर
- शामिल अधिकारी: उपसंचालक मनोज बरहैया, सीमा तिवारी, प्रिया विश्नोई और अनूप कुमार बौरिया अभी भी फरार हैं।
- इनाम जारी: प्रत्येक फरार आरोपी पर 20,000 रुपये का इनाम है।
घोटाले का पता कैसे चला?
- आंतरिक ऑडिट: सैलरी और फंड्स के असमान्य लेन-देन पर संदेह हुआ।
- शिकायत दर्ज: 12 मार्च को ओमती थाने में धारा 420 (धोखाधड़ी) समेत अन्य के तहत केस दर्ज किया गया।
पुलिस की कार्रवाई और चुनौतियां
- तकनीकी जाँच: सॉफ्टवेयर हैकिंग और बैंक ट्रांजैक्शन का डिटेल विश्लेषण किया जा रहा है।
- अंतर्राज्यीय गिरफ्तारी: संदीप को फरारी के दौरान दूसरे राज्य से पकड़ा गया।
सवाल जो अभी बाकी हैं
1. क्या विभागीय ऑडिट सिस्टम इतना कमजोर था?2. इतने बड़े गबन में शामिल अधिकारियों की जवाबदेही क्यों नहीं तय हो पाई?
3. क्या इसी तरह के और मामले अन्य जिलों में छिपे हुए हैं?
निष्कर्ष: सिस्टम में सुधार की जरूरत
यह मामला सरकारी तंत्र में तकनीकी लापरवाही और नैतिक जिम्मेदारी की कमी को उजागर करता है। पुलिस का कहना है कि ऐसे केसों को रोकने के लिए डिजिटल सुरक्षा और आंतरिक निगरानी को मजबूत करने की आवश्यकता है।अद्यतन (Update): फरार अधिकारियों की तलाश जारी है, जबकि संदीप और उसके परिवार को जेल भेज दिया गया है।
लेखक टिप्पणी: यह घोटाला नौकरशाही व्यवस्था की खामियों का चेहरा दिखाता है। ऐसे मामलों में सख्त कार्रवाई और पारदर्शिता ही भविष्य में भरोसा कायम कर सकती है।