सीमा से लौटकर भारत को अपनाने वाली सारा का सफर
पाकिस्तान की निवासी सारा खान ने अटारी-वाघा सीमा पर लौटते ही "मेरा भारत महान" और "हिंदुस्तान ज़िंदाबाद" के नारों के साथ अपने नए जीवन की शुरुआत की। उन्हें भारत सरकार ने चिकित्सीय आधार पर लॉन्ग टर्म वीजा (एलटीवी) देते हुए जम्मू-कश्मीर के राजौरी जिले के बुद्धल क्षेत्र में अपने परिवार के साथ रहने की अनुमति प्रदान की है। यह वीजा मार्च 2026 तक वैध है, जिसके बाद सारा अपने दोनों बेटों के साथ भारत में ही रहेंगी।
परिवार की मुश्किलों भरी यात्रा और सरकारी फैसले का मोड़
सारा खान का मामला तब चर्चा में आया जब उन्हें और उनके पाकिस्तान में जन्मे 5 वर्षीय बेटे उमर हयात को निर्वासन आदेश का उल्लंघन करने के आरोप में हिरासत में लिया गया। उन्हें पाकिस्तान भेजने के लिए अटारी-वाघा सीमा तक ले जाया गया, लेकिन इसी बीच उनके परिवार ने एक महत्वपूर्ण पहल की। सारा के पति औरंगज़ेब खान और ससुर जमुरद खान ने भारतीय अधिकारियों से उनकी हाल ही में हुई सिजेरियन डिलीवरी और वैध वीजा स्थिति का हवाला देते हुए रहने की अपील की। गृह मंत्रालय ने इस पर सहानुभूतिपूर्वक विचार करते हुए उन्हें भारत में रहने की मंजूरी दे दी।
नवजात बेटे का जन्म और परिवार की जिद्द
सारा का दूसरा बेटा हाल ही में बुद्धल में पैदा हुआ, जिसके बाद परिवार ने सीमा पर एक बार फिर अपनी दृढ़ इच्छाशक्ति दिखाई। अधिकारियों ने शुरुआत में नवजात को सारा के साथ रहने की अनुमति नहीं दी थी, जिसके बाद परिवार ने सीमा पर ही पुनर्विचार का अनुरोध किया। इस दौरान सारा के ससुर जमुरद खान ने अधिकारियों के साथ लगातार संवाद बनाए रखा और दस्तावेजों की पुष्टि करवाई। अंततः सारा को दोनों बेटों के साथ बुद्धल वापस भेज दिया गया।
ये भी पढ़ें: आ गई bajaj की 100 cc नई बाइक
परिवार की खुशी और प्रशासन को धन्यवाद
बुद्धल लौटने पर सारा और उनके परिजनों ने खुशी जताते हुए देशभक्ति के नारे लगाए। ससुर जमुरद खान ने प्रशासन का आभार व्यक्त करते हुए कहा, "हमारी मुहिम और दस्तावेजों की पारदर्शिता के कारण अधिकारियों ने सहयोग किया। सारा अब अपने बच्चों के साथ सुरक्षित है।" उन्होंने यह भी बताया कि सारा को पाकिस्तान में उमर के जन्म के 6 महीने बाद ही लॉन्ग टर्म वीजा मिल गया था, लेकिन निर्वासन के दौरान उनकी मातृत्व संबंधी जरूरतों को देखते हुए भारत सरकार ने मानवीय रुख अपनाया।
भविष्य की उम्मीदों के साथ नई शुरुआत
इस फैसले ने न केवल सारा के परिवार को एक स्थायी समाधान दिया बल्कि भारत-पाकिस्तान के बीच मानवीय मामलों में सहयोग की संभावनाएं भी दिखाईं। सारा अब अपने पति, दोनों बेटों और ससुर-सास के साथ बुद्धल में शांतिपूर्ण जीवन की उम्मीद कर रही हैं। यह मामला उन तमाम परिवारों के लिए एक उदाहरण है, जो सीमाओं की जटिलताओं के बीच अपनों से मिलने का संघर्ष करते हैं।