कटनी, मध्य प्रदेश। एक ऊंचे पद पर बैठे अधिकारियों के बीच चल रहे कड़वे विवाद ने एक मासूम बच्चे के बचपन को नीलाम कर दिया है। कटनी जिले में डीएसपी ख्याति मिश्रा और उनके पति तहसीलदार शैलेंद्र बिहारी शर्मा के आपसी टकराव ने एक ऐसा गंभीर मोड़ लिया है, जिसने न सिर्फ बाल अधिकारों को कुचला है, बल्कि पुलिस व्यवस्था पर भी गंभीर सवाल खड़े किए हैं। आरोप है कि पुलिसकर्मियों ने तहसीलदार के 8 वर्षीय बेटे को बेरहमी से पीटा, गाड़ी की डिक्की में ठूंसकर थाने ले गए और करीब 5 घंटे तक लॉकअप में बंद रखा। यह मामला अब राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (एनसीपीसीआर) तक पहुंच गया है।
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ख्याति मिश्रा और उनके पति शैलेंद्र बिहारी शर्मा। |
विवाद की जड़: क्या है डीएसपी और तहसीलदार के बीच तनाव?
- पद और प्रतिष्ठा का टकराव: तहसीलदार शर्मा का आरोप है कि उनकी पत्नी डीएसपी ख्याति मिश्रा होने के नाते उन्हें लगातार मानसिक रूप से प्रताड़ित किया जा रहा है और उन्हें अलग करने की साजिश चल रही है। वहीं, डीएसपी मिश्रा का कहना है कि उनके पति उन्हें बदनाम करने की कोशिश कर रहे हैं क्योंकि वह पद में उनसे ऊपर हैं। यह टकराव काफी समय से चल रहा था।
- परिवारिक कलह का सार्वजनिक विस्फोट: यह सिर्फ पति-पत्नी का झगड़ा नहीं रहा। दोनों ओर के आरोप-प्रत्यारोप और शिकायतों ने इसे एक सार्वजनिक और प्रशासनिक संकट में बदल दिया था।
31 मई की काली शाम: बचपन को कुचलने वाली घटनाक्रम
- मऊगंज से कटनी आया मासूम: 31 मई को तहसीलदार शर्मा का 8 साल का बेटा अपने नाना (मामा) के साथ मऊगंज से कटनी आया। उनका इरादा सीएसपी आवास (जहां डीएसपी मिश्रा रहती हैं) जाने का था।
- आवास पर हुई हिंसा: आरोप है कि जैसे ही बच्चा अपने नाना और अन्य परिजनों के साथ सीएसपी आवास पहुंचा, वहां मौजूद लोगों ने उन पर हमला बोल दिया। शिकायत में कहा गया है कि यह सब तत्कालीन एसपी अभिजीत रंजन के इशारे पर हुआ।
- बच्चे पर बरपी बर्बरता: सबसे भयावह आरोप यह है कि पुलिसकर्मियों ने न सिर्फ परिजनों की पिटाई की, बल्कि 8 साल के उस नन्हें बच्चे को भी बेरहमी से पीटा।
- डिक्की में ठूंसकर ले जाया गया: आरोप है कि पुलिसकर्मियों ने पीट-पीटकर लहूलुहान कर दिए गए बच्चे को गाड़ी की डिक्की (ट्रंक) में ठूंसकर कोतवाली थाने ले गए। यह कृत्य अपने आप में अमानवीय और जघन्य है।
- 5 घंटे की नर्कयात्रा: थाने पहुंचने के बाद बच्चे को लॉकअप में बंद कर दिया गया। हैरान कर देने वाली बात यह है कि लगभग 5 घंटे तक उस नन्हें बच्चे को अंधेरे और डरावने लॉकअप में अकेला रखा गया। उस दौरान उसके माता-पिता में से कोई भी उसके साथ नहीं था।
बाल मन पर आघात: क्या हुए परिणाम?
- गहरा मानसिक आघात: एक मासूम बच्चे के लिए इतनी हिंसा, डर और अकेलेपन का अनुभव गहरा मानसिक आघात छोड़ने वाला है। उसके भविष्य पर इसका क्या प्रभाव पड़ेगा, यह एक बड़ा सवाल है।
- स्पष्ट बाल अधिकारों का हनन: बच्चे को बिना किसी अपराध के पीटना, डिक्की में ले जाना और लॉकअप में बंद करना बाल अधिकारों का सीधा, गंभीर और निंदनीय उल्लंघन है। यह बाल संरक्षण कानूनों (जैसे जुवेनाइल जस्टिस एक्ट और पॉक्सो एक्ट के प्रावधान) की भी धज्जियां उड़ाना है। बच्चे को किसी भी हालत में लॉकअप में नहीं रखा जा सकता।
शिकायत और मांग: न्याय की गुहार
- एनसीपीसीआर को शिकायत: तहसीलदार शर्मा के वकील ने इस पूरे प्रकरण की राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (एनसीपीसीआर) को शिकायत भेजी है। शिकायत में बच्चे के साथ हुई क्रूरता और उसके अधिकारों के हनन का विस्तार से जिक्र किया गया है।
- दोषियों के खिलाफ कठोर कार्रवाई की मांग: शिकायत में उन पुलिस अधिकारियों के खिलाफ तत्काल और सख्त कार्रवाई की मांग की गई है जो इस घटना में शामिल बताए जा रहे हैं। इनमें शामिल हैं:
- एसडीओपी प्रभात शुक्ला
- कोतवाली थाना प्रभारी अजय सिंह
- महिला थाना प्रभारी मंजू शर्मा
- ऊंचे अधिकारियों पर भी निशाना: शिकायत में तत्कालीन एसपी अभिजीत रंजन और एएसपी डॉ. संतोष डेहरिया पर भी कार्रवाई की मांग की गई है, यह आरोप लगाते हुए कि यह सब उनके इशारे पर हुआ।
प्रशासनिक हलचल और जांच
- एसपी हटाए गए: घटना की गंभीरता को देखते हुए मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने तत्काल हस्तक्षेप किया और तत्कालीन एसपी अभिजीत रंजन को तुरंत हटा दिया।
- डीआईजी जबलपुर को जांच सौंपी: मामले की जांच का दायित्व जबलपुर रेंज के डीआईजी (डिप्टी इंस्पेक्टर जनरल ऑफ पुलिस) को सौंपा गया है।
- परिवार के बयान दर्ज: डीआईजी जबलपुर ने पीड़ित परिवार के सदस्यों के बयान दर्ज कर लिए हैं।
- रिपोर्ट मुख्यालय भेजी: प्रारंभिक जांच के बाद डीआईजी ने अपनी रिपोर्ट पुलिस मुख्यालय भेज दी है। अब इस रिपोर्ट के आधार पर आगे की कार्रवाई होने की उम्मीद है।
गंभीर सवाल: सत्ता के दुरुपयोग की पराकाष्ठा?
यह मामला सिर्फ एक पारिवारिक विवाद नहीं रहा। यह सवाल खड़ा करता है कि क्या ऊंचे पद और हैसियत का दुरुपयोग करके निर्दोष बच्चों को निशाना बनाना और उनके मौलिक अधिकारों को रौंदना संभव हो गया है? एक बच्चे को पीटना, डिक्की में डालकर ले जाना और लॉकअप में बंद करना न सिर्फ अमानवीय है, बल्कि कानूनी रूप से गंभीर अपराध भी है। यह घटना पुलिस की संवेदनहीनता और बाल मनोविज्ञान की पूर्ण अज्ञानता की भी पोल खोलती है।
आगे की राह: न्याय और सुधार की उम्मीद
- त्वरित और निष्पक्ष जांच: एनसीपीसीआर की शिकायत और डीआईजी की जांच से यह उम्मीद है कि घटना के सभी पहलुओं की पड़ताल होगी और दोषियों को कड़ी सजा मिलेगी।
- बच्चे के लिए परामर्श: पीड़ित बच्चे को तत्काल मनोवैज्ञानिक परामर्श और सहायता की जरूरत है ताकि इस भयावह अनुभव के निशान कम से कम हों।
- पुलिस में संवेदनशीलता प्रशिक्षण: इस घटना ने पुलिस बल, विशेषकर बाल अधिकारों और बच्चों के साथ व्यवहार के संबंध में गंभीर प्रशिक्षण और जागरूकता की कमी को उजागर किया है। इस दिशा में ठोस कदम उठाने की आवश्यकता है।
- सत्ता का जवाबदेहीकरण: यह सुनिश्चित करना होगा कि पद और सत्ता का दुरुपयोग करके किसी भी व्यक्ति, खासकर एक मासूम बच्चे के अधिकारों का हनन बर्दाश्त नहीं किया जाएगा।
कटनी का यह दुखद प्रकरण एक कड़वी याद दिलाता है कि वयस्कों के झगड़ों और सत्ता के खेल की भेंट कभी-कभी सबसे निर्दोष किरदार - बच्चे - चढ़ जाते हैं। 8 साल के उस बच्चे को न्याय मिले और उसके मन के जख्म भरें, यही अब सबकी प्रार्थना और मांग है। यह मामला सिर्फ कटनी तक सीमित नहीं, बल्कि पूरे देश में बाल सुरक्षा और पुलिस जवाबदेही पर एक बड़ा सवाल खड़ा करता है।