एक ऐसा खाद्य घोटाला जिसे देखकर आपका खून खौल उठेगा
बारिश की मार, गरीबों पर वार!
मानसून के मौसम में जब खाद्य सुरक्षा सबसे ज्यादा जरूरी होती है, मध्य प्रदेश के गरीब परिवारों को तीन महीने का राशन एक साथ दिया जाना था। लेकिन यह राहत किसी कुटिल मजाक में बदल गई। सतना से शिवपुरी पहुंची चावल की रैक ने एक भयावह सच्चाई उजागर कर दी है – गरीबों के खाने वाले चावल में कंकड़ और सीमेंट मिला हुआ था!
ट्रेन में बिखरा चावल, बिखरी मानवता
मंगलवार को शिवपुरी रेलवे स्टेशन पर सतना से आई चावल की रैक पहुंची। यहां एक चौंकाने वाला नजारा सामने आया:
- चावल के कुछ बोरे (कट्टे) ट्रेन की बोगियों में फट गए।
- हजारों क्विंटल चावल बोगियों में बिखर गया।
- बिखरे चावल में साफ दिखाई दे रहे थे सीमेंट के ढेले और पत्थर के कंकड़!
इस बिखरे हुए, गंदे और खतरनाक सामग्री से मिले चावल का क्या हुआ? क्या उसे सुरक्षित ढंग से हटाया गया? नहीं!
"जैसा है, वैसा ही भरो!" - अधिकारियों का शर्मनाक आदेश
- नागरिक आपूर्ति निगम के अधिकारियों की निगरानी में, मजदूरों को एक हैरान कर देने वाला काम सौंपा गया।
- मजदूरों ने खुद बताया: "हमें ट्रेन के फर्श पर बिखरे हुए इसी चावल को, जिसमें सीमेंट और पत्थर मिले हुए थे, वैसे ही नए बोरों में भरने को कहा गया।"
- ट्रांसपोर्ट ठेकेदार संतोष कुमार तायल ने भी पुष्टि की कि चावल में अशुद्धियां मिली हैं और अधिकारियों को सूचित किया गया, लेकिन आदेश था: "चावल को कट्टों में पैक करवा कर गोदाम में रखवा दो।"
यानी, साफ तौर पर: गरीबों के मुंह में जाने वाले चावल में मिले जहर को जानबूझकर पैक करवाया गया!
अधिकारियों का बचाव: "थोड़ा बहुत तो चलता है?"
इस गंभीर आरोप के बाद जब अधिकारियों से पूछा गया, तो उनके जवाब और भी चौंकाने वाले थे:
- डिप्टी कलेक्टर व निगम प्रभारी ममता शाक्य का दावा: "पूरा चावल खराब नहीं है। सर्वेयर से जांच करवाई गई है। सिर्फ नीचे का चावल सीमेंट और पत्थर से मिला हुआ है। उसे अलग करवा देंगे ताकि वह आम जनता तक न पहुंचे।"
- सवाल यह उठता है:
- अगर चावल पहले से ही गंदा था (जैसा कि मजदूरों ने बताया), तो सिर्फ "नीचे वाला" ही कैसे दूषित हो सकता है?
- ट्रेन में बिखरने के बाद जमीन से उठाकर भरा गया चावल "सुरक्षित" कैसे हो सकता है?
- क्या "अलग करने" की यह प्रक्रिया विश्वसनीय है? क्या गरीबों को जहर खिलाने का जोखिम लेना उचित है?
गायब हुए गुणवत्ता प्रहरी!
- इस पूरे घटनाक्रम की देखरेख नागरिक आपूर्ति निगम के क्वालिटी कंट्रोलर शिवराज की जिम्मेदारी थी।
- लेकिन जब मीडिया और जनता का ध्यान इस घोटाले की तरफ गया, तो यह गुणवत्ता नियंत्रक अधिकारी मौके से गायब पाए गए!
- यह गायब होना सवाल खड़े करता है: क्या उन्हें पहले से पता था? क्या वे जवाब देने से बचना चाहते हैं?
यह सिर्फ चावल नहीं, जिंदगी से खिलवाड़ है!
यह घटना सिर्फ चावल में मिलावट की बात नहीं है। यह है:
1. सार्वजनिक स्वास्थ्य के साथ खिलवाड़: सीमेंट और कंकड़ खाने से गंभीर पेट की बीमारियां, आंतों में चोट, यहां तक कि जानलेवा हालात भी पैदा हो सकते हैं। क्या गरीबों की जान इतनी सस्ती है?
2. मानवाधिकारों का उल्लंघन: हर नागरिक को सुरक्षित और पौष्टिक भोजन पाने का अधिकार है। यह घटना गरीबों के इस मौलिक अधिकार का सरेआम हनन है।
3. व्यवस्था की पोल खोलती घटना: यह पूरी प्रक्रिया सरकारी व्यवस्था में गहरे पैठे भ्रष्टाचार, लापरवाही और जवाबदेही के अभाव को बेनकाब करती है। क्या गोदाम में पहुंचने से पहले किसी ने चावल की जांच नहीं की?
4. गरीबों का अपमान: यह घटना गरीबों के प्रति एक गहरी असंवेदनशीलता और उपेक्षा दर्शाती है। क्या उन्हें इतना ही घटिया खाना खाने के लिए मजबूर किया जाना चाहिए?
जवाब चाहिए, जिम्मेदारी चाहिए!
शिवपुरी और श्योपुर के उन लाखों गरीब परिवारों से, जिन्हें यह जहरीला राशन मिलने वाला था, कुछ सवाल:
- क्या उन अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई होगी जिन्होंने दूषित चावल को पैक और भेजने का आदेश दिया?
- क्या क्वालिटी कंट्रोलर शिवराज को उनकी गैर-मौजूदगी और जिम्मेदारी न निभाने के लिए जवाबदेह ठहराया जाएगा?
- क्या यह पहली बार हुआ है, या यह एक सिस्टमैटिक धांधली का हिस्सा है? पूरे सिस्टम की जांच कौन करेगा?
- गरीबों को गारंटी कैसे मिलेगी कि उन्हें साफ, सुरक्षित और खाने लायक राशन मिलेगा?
यह मामला सिर्फ शिवपुरी का नहीं है। यह हर उस गरीब का मामला है जो सरकारी योजनाओं पर अपने परिवार के पेट भरने की उम्मीद करता है। जब राशन में पत्थर और सीमेंट मिला हो, तो क्या यह व्यवस्था है या गरीबों के साथ एक क्रूर मजाक? जब तक दोषियों को सख्त सजा नहीं मिलती और पूरी व्यवस्था में पारदर्शिता और जवाबदेही नहीं लाई जाती, तब तक ऐसे घोटाले दोहराते रहेंगे। गरीब की रोटी से खिलवाड़ बंद होना चाहिए।