देवरिया, उत्तर प्रदेश: ईद-उल-अजहा (बकरीद) का पवित्र त्योहार, जो आमतौर पर भाईचारे और त्याग की भावना से जुड़ा होता है, उत्तर प्रदेश के देवरिया जिले में एक ऐसी दिल दहला देने वाली घटना का गवाह बना जिसने सबको स्तब्ध कर दिया।
एक 60 वर्षीय व्यक्ति ने पारंपरिक पशु बलि की जगह एक अकल्पनीय कदम उठाते हुए खुद को ही कुर्बान कर दिया। उसके पीछे छोड़े गए एक आत्मघाती पत्र ने उसके इस कृत्य के पीछे गहरा दार्शनिक विचार और एक टूटे हुए दिल की कहानी बयां की।
घटना का स्थान और क्रम
- गांव: उधोपुर गांव, गौरी बाजार थाना क्षेत्र, देवरिया।
- कौन थे शख्स: ईश मोहम्मद अंसारी (60 वर्ष)।
- दिन: बकरीद का पवित्र दिन।
वह दर्दनाक क्षण जब सब कुछ बदल गया
बकरीद की सुबह, ईश मोहम्मद ने अन्य मुस्लिम भाइयों की तरह नमाज अदा की और घर लौटे। लेकिन जो कुछ बाद में हुआ, वह किसी ने नहीं सोचा था। घर के बाहर बनी एक झोपड़ी में जाकर उन्होंने एक भयानक कदम उठाया - उन्होंने खुद का गला काट लिया। इस दर्दनाक कृत्य के बाद वह करीब **एक घंटे तक झोपड़ी में तड़पते रहे। उनकी कराह सुनकर ही परिवार के लोगों को उनकी हालत का पता चला।
परिवार की बेबसी और असफल बचाव प्रयास
परिवारवालों के लिए वह नज़ारा एक भयानक सदमे से कम नहीं था। उन्होंने तुरंत ईश मोहम्मद को पहले देवरिया मेडिकल कॉलेज और फिर उनकी गंभीर हालत को देखते हुए गोरखपुर स्थित बीआरडी मेडिकल कॉलेज भेजा। दुर्भाग्यवश, इलाज के दौरान ही ईश मोहम्मद ने दम तोड़ दिया। उनका अंतिम संस्कार उसी जगह किया गया जिसका उल्लेख उन्होंने अपने पत्र में किया था।
वह आत्मघाती पत्र: दर्द, दर्शन और एक संदेश
ईश मोहम्मद ने अपने इस कृत्य से पहले एक सुसाइड नोट लिखा था। यह पत्र उनकी मानसिक स्थिति और उनके कृत्य के पीछे के तर्क को समझने का एकमात्र स्रोत है। पत्र में उन्होंने लिखा:
1. पशु कुर्बानी पर सवाल: "इंसान अपने घर में बकरे को बेटे की तरह पोसकर कुर्बानी करता है, वो भी जीव है।" यह पंक्ति उनके मन में पशु कुर्बानी के प्रचलित रिवाज़ को लेकर गहरी पीड़ा और नैतिक संघर्ष को दर्शाती है। वह एक जीव के प्रति स्नेह और फिर उसी के बलिदान के विरोधाभास से व्यथित प्रतीत होते हैं।
2. अपनी कुर्बानी का औचित्य: "कुर्बानी करनी चाहिए, मैं खुद अपनी कुर्बानी अल्लाह के रसूल के नाम पर कर रहा हूं।" उनका मानना था कि कुर्बानी का सिद्धांत महत्वपूर्ण है, लेकिन उन्होंने पशु के बजाय खुद को चुना।
3. किसी पर आरोप नहीं: "किसी ने मेरा कत्ल नहीं किया है।" उन्होंने स्पष्ट किया कि यह उनका अपना निर्णय था और किसी और का इसमें हाथ नहीं था।
4. अंतिम इच्छा और अंतिम शब्द: "सुकून से मिट्टी देना, किसी से डरना नहीं है। जिस जगह खूंटा है उसी जगह पर मेरी कब्र होना चाहिए।" उनके अंतिम शब्द "सुकून से मिट्टी देना, किसी से डरना नहीं" एक गहरी आत्मिक शांति या मृत्यु के प्रति उनके निर्भय रवैये का संकेत देते हैं, भले ही उसका रास्ता कितना भी चौंकाने वाला क्यों न हो। उन्होंने स्पष्ट रूप से अपनी कब्रगाह के स्थान के बारे में भी निर्देश दिया।
प्रशासन की कार्रवाई और जांच
- आपात कॉल: घटना की सूचना यूपी-112 (आपात सेवा) पर दी गई। पुलिस की पीआरवी (पुलिस रिस्पांस व्हीकल) तुरंत मौके पर पहुंची।
- मरीज को अस्पताल पहुंचाना: घायल ईश मोहम्मद को पहले देवरिया मेडिकल कॉलेज और फिर गोरखपुर रेफर किया गया।
- जांच के प्रारंभिक निष्कर्ष: देवरिया के एडिशनल एसपी अरविंद कुमार वर्मा ने बताया कि फील्ड यूनिट द्वारा जुटाए गए साक्ष्यों और जांच के आधार पर प्रारंभिक तौर पर यह पुष्टि हुई है कि यह आत्महत्या का मामला है। घटनास्थल पर मिला सुसाइड नोट इसकी पुष्टि करता है।
- कानूनी प्रक्रिया: पुलिस ने मानक प्रक्रिया के तहत पोस्टमार्टम (पीएम) कराया और पंचनामा तैयार किया। अन्य पहलुओं की भी जांच जारी है।
एक समाज के लिए चिंतन का विषय
ईश मोहम्मद अंसारी की यह दर्दनाक कहानी सिर्फ एक व्यक्तिगत त्रासदी नहीं है। यह कई गंभीर मुद्दों की ओर इशारा करती है:
- मानसिक स्वास्थ्य: इस तरह के चरम कदम अक्सर गहरी मानसिक पीड़ा, अवसाद या निराशा का संकेत होते हैं। यह घटना समाज में मानसिक स्वास्थ्य के प्रति जागरूकता और समय पर हस्तक्षेप की अहमियत को रेखांकित करती है।
- धार्मिक रिवाजों पर व्यक्तिगत संघर्ष: ईश मोहम्मद का सुसाइड नोट स्पष्ट रूप से दिखाता है कि वह पारंपरिक पशु कुर्बानी की प्रथा से गहराई से आहत और द्वंद्व में थे। यह दर्शाता है कि कैसे व्यक्ति धार्मिक प्रथाओं को लेकर गहन नैतिक संकट का सामना कर सकते हैं।
- जीवन की पवित्रता: उनका यह कथन कि "वो (बकरा) भी जीव है" सभी जीवित प्राणियों के प्रति करुणा और जीवन की पवित्रता के बारे में एक मार्मिक टिप्पणी है, भले ही उसकी अभिव्यक्ति का तरीका अत्यंत विवादास्पद और दुखद था।
ईश मोहम्मद का अंतिम संदेश "सुकून से मिट्टी देना, किसी से डरना नहीं" एक विरोधाभासी विदाई है - जिसमें एक ओर शांति की कामना है तो दूसरी ओर एक ऐसा कृत्य जिसने परिवार और समुदाय को गहरे सदमे और दुःख में छोड़ दिया है। यह घटना एक कड़वी याद दिलाती है कि कभी-कभी मानवीय पीड़ा और दार्शनिक विचार इतने गहरे हो सकते हैं कि वे अकल्पनीय और भयानक परिणामों को जन्म दे देते हैं।