रीवा, मध्य प्रदेश: मध्य प्रदेश में भ्रष्टाचार के खिलाफ लोकायुक्त की कार्रवाइयों का सिलसिला थमने का नाम नहीं ले रहा। लेकिन हर बार पकड़े जाने के बावजूद, रिश्वतखोर अधिकारियों-कर्मचारियों के हौसले पस्त होते नजर नहीं आ रहे। इसका ताजा उदाहरण रीवा जिले में देखने को मिला, जहां कलेक्ट्रेट परिसर के भीतर ही, नायब तहसीलदार कार्यालय में पदस्थ एक बाबू को लोकायुक्त टीम ने रंगेहाथों रिश्वत लेते पकड़ा।
क्या था पूरा मामला? एक आम आदमी की पीड़ा
हुजूर तहसील के गंगहरा गांव के रहने वाले राजेश कुमार पांडे एक परेशानी लेकर पहुंचे थे। उनके गांव गंगहरा और पड़ोसी गांव सगरा की सीमा पर लगा एक रास्ता बंद कर दिया गया था और वहां निर्माण कार्य शुरू हो गया था। इस निर्माण को रोकने के लिए राजेश ने तहसीलदार कार्यालय, हुजूर में स्टे ऑर्डर (रोक लगाने) का आवेदन दाखिल किया। यहीं से शुरू हुआ उनका दुखद सफर।
आवेदन की कीमत लगा दी गई: राजेश के आवेदन को निपटाने की जिम्मेदारी नायब तहसीलदार कार्यालय में पदस्थ राजस्व निरीक्षक (बाबू) विनोद शुक्ला पर थी। काम करवाने के एवज में बाबू शुक्ला ने साफ-साफ राजेश से 3,000 रुपये की रिश्वत मांगी। स्टे ऑर्डर जारी करवाने की उम्मीद में फंसे राजेश के पास सिर्फ दो विकल्प थे – या तो रिश्वत दें, या फिर अपना काम अधर में लटका देखें।
आवाज उठाई गई: लोकायुक्त की शरण में
हताश राजेश कुमार पांडे ने हार नहीं मानी। उन्होंने बाबू विनोद शुक्ला द्वारा रिश्वत मांगे जाने की खुली शिकायत 6 जून को रीवा स्थित लोकायुक्त कार्यालय में दर्ज कराई। उनकी इस हिम्मत ने पूरे मामले का रुख मोड़ दिया।
जांच और पुख्ता सबूत: लोकायुक्त की टीम ने राजेश की शिकायत को गंभीरता से लिया। उनकी बातों की पुष्टि के लिए जांच शुरू की गई। जांच में जब रिश्वत मांगे जाने के आरोप की पुष्टि हुई, तो टीम ने सोचा – अब सबूत चाहिए।
जाल बिछाया गया: कलेक्ट्रेट में ही हुआ पकड़वाई का नाटकीय मोड़
लोकायुक्त टीम ने बाबू शुक्ला को पकड़ने के लिए एक Trap (जाल) तैयार किया:
1. मार्क्ड नोट तैयार किए गए: रिश्वत की मांगी गई रकम, 3,000 रुपये, को विशेष तरीके से चिह्नित (मार्क) किया गया।
2. शिकायतकर्ता को भेजा गया: राजेश कुमार पांडे को चिह्नित नोटों के साथ, निर्धारित समय पर, नायब तहसीलदार के कार्यालय (जो कलेक्ट्रेट परिसर के भीतर ही स्थित है) भेजा गया। उन्हें निर्देश दिया गया कि वे बाबू शुक्ला को यह रकम दें।
3. लोकायुक्त टीम मौके पर मौजूद: लोकायुक्त के अधिकारी छिपकर पूरे दृश्य पर नजर रख रहे थे, जैसे ही बाबू विनोद शुक्ला ने राजेश से रिश्वत के तौर पर वह 3,000 रुपये लिए, टीम ने तुरंत कार्रवाई शुरू कर दी।
दृश्य था चौंकाने वाला: कलेक्ट्रेट जैसे प्रशासनिक मुख्यालय की पवित्र दहलीज पर, अपने ही कार्यालय में बैठा एक सरकारी बाबू, रिश्वत लेते हुए पकड़ा गया। उसके हाथ में चिह्नित नोट थे – सबूत स्पष्ट और ठोस थे। बाबू विनोद शुक्ला को तत्काल गिरफ्तार कर लिया गया। पूरा मामला दर्ज कर लिया गया है और कानूनी कार्रवाई शुरू हो गई है।
बड़ा सवाल: पकड़े जाने के बावजूद क्यों नहीं थम रहा भ्रष्टाचार?
यह घटना मध्य प्रदेश में भ्रष्टाचार के खिलाफ चल रहे अभियान की सफलता दिखाती है, लेकिन एक गंभीर चिंता भी पैदा करती है:
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सोर्स फोटो (पत्रिका) |
- लगातार पकड़े जाने का सिलसिला: लोकायुक्त लगभग हर दूसरे दिन कहीं न कहीं रिश्वतखोरों को रंगेहाथों पकड़ रही है। यह दर्शाता है कि निगरानी और कार्रवाई प्रभावी है।
- फिर भी नहीं सबक: लेकिन इसके बावजूद, रिश्वतखोरी का यह सिलसिला थम क्यों नहीं रहा? क्या सजा का डर कम है? क्या प्रक्रियाएं इतनी जटिल हैं कि आम आदमी बिना 'सुविधा शुल्क' चुकाए अपना काम करवा ही नहीं सकता?
- सिस्टम में खामी या नैतिक पतन? क्या यह सिर्फ कुछ भ्रष्ट लोगों की समस्या है, या फिर सिस्टम में ऐसी खामियां हैं जो रिश्वतखोरी को बढ़ावा देती हैं? क्या सरकारी सेवा की भावना कहीं पीछे छूट गई है?
आम आदमी की आवाज: राजेश कुमार पांडे जैसे लोगों के लिए यह घटना एक छोटी जीत है। उन्होंने हिम्मत दिखाई और रिश्वत देने से इनकार करके सिस्टम पर भरोसा किया। लेकिन उनकी और हजारों राजेशों की आशा यही है कि ऐसी कार्रवाइयां सिर्फ एक-दो बाबुओं को सबक सिखाने तक सीमित न रहें, बल्कि एक ऐसा माहौल बने जहां उन्हें अपना हक पाने के लिए किसी से रिश्वत की भीख न मांगनी पड़े। कलेक्ट्रेट जैसे सर्वोच्च प्रशासनिक केंद्र में ही रिश्वत लेते पकड़ा जाना, यह साबित करता है कि भ्रष्टाचार कितनी गहराई तक पैठ बना चुका है। लोकायुक्त की टीम की सक्रियता सराहनीय है, लेकिन सवाल यह है कि कब तक आम नागरिकों को अपने ही अधिकारों के लिए इस तरह की 'छापेमारी' का सहारा लेना पड़ेगा? सिस्टम में सुधार और नैतिकता की पुनर्स्थापना ही स्थायी समाधान हो सकता है।