मध्यप्रदेश: छिंदवाड़ा जिले के चांद तहसील में हुई बड़ी कार्रवाई, किसान 2 साल तक हुआ प्रताड़ित
छिंदवाड़ा में रिश्वत के खिलाफ़ बड़ी कार्रवाई
बुधवार को मध्यप्रदेश के छिंदवाड़ा जिले की चांद तहसील में लोकायुक्त जबलपुर की टीम ने एक पटवारी को 40 हज़ार रुपये की रिश्वत लेते हुए रंगेहाथों पकड़ा। पटवारी हीरालाल चौरे पर आरोप है कि उसने एक किसान को ज़मीन का बंटवारा और पावती बनाने के नाम पर पैसे ऐंठे। यह मामला सरकारी तंत्र में जड़ जमा चुके भ्रष्टाचार की एक और शर्मनाक घटना को उजागर करता है।
कैसे हुआ पर्दाफाश?
- किसान की शिकायत: ढीमरमेटा गाँव के किसान निर्दोष पूनाराम सरेयाम ने लोकायुक्त कार्यालय जबलपुर में शिकायत दर्ज कराई कि पटवारी हीरालाल चौरे ने उनसे दो साल तक रिश्वत की मांग की।
- स्टिंग ऑपरेशन: लोकायुक्त टीम ने किसान को रिश्वत की पुष्टि के लिए डिजिटल सुरक्षा उपकरणों से लैस किया और पटवारी से बातचीत रिकॉर्ड कराई।
- गिरफ्तारी: चांद तहसील कार्यालय में जैसे ही पटवारी ने 40 हज़ार रुपये लिए, सादे कपड़ों में मौजूद टीम ने उसे पकड़ लिया।
2 साल तक किसान को झेलनी पड़ी प्रताड़ना
- दस्तावेज़ों का अटकना: किसान निर्दोष सरेयाम को ज़मीन बंटवारे और पावती बनाने के लिए 2022 से ही तहसील के चक्कर लगाने पड़े।
- धमकी और देरी: पटवारी ने रिश्वत न मिलने पर काम में जानबूझकर अड़चनें डालीं और किसान को मानसिक रूप से प्रताड़ित किया।
- आखिरी हल: थक-हारकर किसान ने लोकायुक्त से संपर्क किया, जिसके बाद यह स्टिंग ऑपरेशन प्लान किया गया।
लोकायुक्त की टीम ने दिखाई सक्रियता
- रियल-टाइम एक्शन: जबलपुर लोकायुक्त की टीम ने शिकायत मिलते ही तुरंत जांच शुरू की और पटवारी की गतिविधियों पर नज़र रखी।
- टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल: किसान को ऑडियो-वीडियो रिकॉर्डिंग डिवाइस दी गई, ताकि सबूत जुटाए जा सकें।
- भ्रष्टाचार के खिलाफ़ जीरो टॉलरेंस: लोकायुक्त ने साफ़ किया कि ऐसे मामलों में कड़ी कार्रवाई का नियम है।
मध्यप्रदेश: भ्रष्टाचार का सिलसिला बना हुआ है चुनौती
- लगातार घटनाएं: पिछले कुछ महीनों में राज्य के विभिन्न जिलों में अधिकारियों और कर्मचारियों के रिश्वत लेते पकड़े जाने के मामले सामने आए हैं।
- जनता की नाराज़गी: आम नागरिकों का कहना है कि भ्रष्टाचार रुकने का नाम नहीं ले रहा, जिससे उनके कामकाज में दिक्कतें बढ़ रही हैं।
- सिस्टम में खामी: विशेषज्ञों का मानना है कि नौकरशाही प्रक्रियाओं में पारदर्शिता की कमी और जवाबदेही का अभाव भ्रष्टाचार को बढ़ावा देता है।
क्या कहता है कानून?
- भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम: रिश्वत लेने या देने वाले को 7 साल तक की जेल और जुर्माने का प्रावधान है।
- लोकायुक्त की भूमिका: यह संस्था सार्वजनिक शिकायतों की जांच करके भ्रष्ट अधिकारियों के खिलाफ़ कार्रवाई करती है।
- जन जागरूकता: नागरिकों को सलाह दी जाती है कि वे रिश्वत न दें और ऐसे मामलों की रिपोर्ट करें।
निष्कर्ष: सिस्टम में सुधार की ज़रूरत
इस घटना ने एक बार फिर साबित किया है कि भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाने के लिए सिर्फ़ कार्रवाई काफी नहीं, बल्कि प्रशासनिक प्रक्रियाओं को सरल और पारदर्शी बनाने की आवश्यकता है। साथ ही, आम लोगों को भी भ्रष्ट अधिकारियों के खिलाफ़ आवाज़ उठाने के लिए प्रोत्साहित किया जाना चाहिए। लोकायुक्त जैसी संस्थाओं की सक्रियता उम्मीद जगाती है, लेकिन यह लड़ाई अभी लंबी है।
संवाददाता: आजाद आवाज न्यूज नेटवर्क | छिंदवाड़ा |