ऐतिहासिक धरोह की खोज: झूलपुर गाँव से मंडला संग्रहालय तक
एक किसान की खोज ने बदल दी इतिहास की धारा
साल 1977 में मंडला तहसील के झूलपुर गाँव के एक खेत से मिले ताम्रपत्र ने इतिहासकारों के लिए नए द्वार खोल दिए। यह शुद्ध ताँबे से निर्मित प्लेट 34 सेमी लंबी, 27 सेमी चौड़ी और 0.5 सेमी मोटी है। इसकी खोज के पीछे की कहानी रोमांचक है: एक स्थानीय किसान को खुदाई के दौरान मंदिर के भग्नावशेषों के बीच यह ताम्रपत्र मिला। कई हाथों से गुजरने के बाद, यह अनीस गौरी नामक व्यक्ति के पास पहुँचा, जिसने इसे 16 जुलाई 1977 को मंडला संग्रहालय को दान कर दिया।
संग्रहालय पहुँचने में भूमिका निभाई मध्यस्थों ने
इस ताम्रपत्र को संग्रहालय तक पहुँचाने में डॉ. धर्मेंद्र प्रसाद (संग्रहालय के संस्थापक सचिव) और ओंकार सिंह ठाकुर जैसे लोगों ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उनकी मध्यस्थता के बिना यह ऐतिहासिक दस्तावेज़ सार्वजनिक प्रदर्शन में नहीं आ पाता।
ताम्रपत्र क्यों है ऐतिहासिक दृष्टि से महत्वपूर्ण?
कलचुरी वंश के अंतिम शासक का रहस्य उजागर
इस ताम्रपत्र ने कलचुरी वंश के अंतिम शासक के बारे में पुरानी धारणाओं को चुनौती दी। पहले यह माना जाता था कि राजा विजय सिंह देव (जिन्होंने 949 से 1197 ई. तक शासन किया) इस वंश के अंतिम शासक थे। लेकिन ताम्रपत्र में उनके पुत्र त्रैलोक्यमल्ल का उल्लेख मिलता है, जो 1211 से 1251 ई. तक सिंहासन पर रहे। इससे सिद्ध होता है कि त्रैलोक्यमल्ल वास्तव में कलचुरी वंश के अंतिम शासक थे।
चंदेल शासकों से जुड़े भ्रम का अंत
1926 में घुरेटी से प्राप्त एक अन्य ताम्रपत्र के आधार पर कुछ इतिहासकार त्रैलोक्यमल्ल को चंदेल वंश का शासक मानते थे। मंडला के ताम्रपत्र ने इस भ्रम को समाप्त कर दिया और साबित किया कि वे कलचुरी राजवंश से थे।
मंडला का कलचुरी साम्राज्य से संबंध
ताम्रपत्र में माटिम गाँव के ब्राह्मण विद्याधर शर्मा को ज़मीन दान का उल्लेख है। यह दान राजा विजय सिंह देव ने अपने पुत्र त्रैलोक्यमल्ल के जन्मोत्सव पर किया था। इससे पता चलता है कि मंडला क्षेत्र उस समय कलचुरी साम्राज्य के अधीन था।
ताम्रपत्र की भाषाई और सांस्कृतिक विरासत
संस्कृत श्लोकों में लिखा गया इतिहास
ताम्रपत्र पर उत्कीर्ण लेख संस्कृत भाषा में है और इसे देवनागरी लिपि के प्रारंभिक रूप में लिखा गया है। इसमें 24 पंक्तियाँ हैं, जो श्लोकों के रूप में व्यवस्थित हैं। दुर्भाग्य से, ताम्रपत्र का पहला पृष्ठ खो गया है, जिससे कुछ श्लोकों का आरंभिक भाग अधूरा रह गया है।
प्रोफेसर त्रिपाठी ने किया था पहला अनुवाद
इस ताम्रपत्र को पढ़ने और समझने का श्रेय प्रोफेसर दिनेश चंद्र त्रिपाठी को जाता है, जो उस समय संग्रहालय के सचिव थे। उन्होंने ही इसके ऐतिहासिक महत्व को पहचाना और इसके आधार पर शोध पत्र प्रकाशित किए।
कलचुरी शासकों का संक्षिप्त इतिहास
विजय सिंह देव: वह शासक जिसने बदली इतिहास की दिशा
विजय सिंह देव ने 949 से 1197 ई. तक शासन किया। उनके शासनकाल में जारी इस ताम्रपत्र से पता चलता है कि उन्होंने न सिर्फ़ राज्य का विस्तार किया, बल्कि ब्राह्मणों और विद्वानों को भूमि दान देकर सांस्कृतिक विकास को भी बढ़ावा दिया।
अजय सिंह देव: विजय सिंह के अनुज की भूमिका
ताम्रपत्र से पता चलता है कि अजय सिंह देव विजय सिंह के छोटे भाई थे, न कि पुत्र, जैसा कि पहले माना जाता था। यह जानकारी कलचुरी वंश की वंशावली को सही करने में मददगार साबित हुई।
त्रैलोक्यमल्ल: अंतिम शासक जिसे इतिहास भूल गया
त्रैलोक्यमल्ल ने 1211 से 1251 ई. तक शासन किया। उनके शासनकाल के बारे में बहुत कम जानकारी थी, लेकिन इस ताम्रपत्र ने उनके योगदान और कालचुरी साम्राज्य के पतन के कारणों पर नई रोशनी डाली है।
ताम्रपत्र का ऐतिहासिक और सांस्कृतिक प्रभाव
इतिहास के पुनर्लेखन की आवश्यकता
इस ताम्रपत्र की खोज ने दिखाया कि इतिहास लेखन में पुरातात्विक साक्ष्यों का कितना महत्व है। इसने न सिर्फ़ कलचुरी वंश के शासनकाल को पुनर्परिभाषित किया, बल्कि मध्ययुगीन भारत की राजनीतिक गतिशीलता को समझने में भी मदद की।
ताम्रपत्र: मध्यकालीन भारत का कानूनी दस्तावेज़
11वीं-12वीं शताब्दी में ताम्रपत्रों का उपयोग भूमि दान, सम्मान प्रदान करने या महत्वपूर्ण घोषणाओं के लिए किया जाता था। ये धातु की प्लेटें उस समय के कानूनी रिकॉर्ड का काम करती थीं और इन्हें सुरक्षित रखा जाता था।
मंडला संग्रहालय: इतिहास का जीवंत कोष
संग्रहालय की अन्य विशिष्ट धरोहें
मंडला संग्रहालय में ताम्रपत्र के अलावा गोंड काल की मूर्तियाँ, डायनासोर के अंडों के जीवाश्म, प्राचीन हथियार और सिक्कों का विशाल संग्रह है। यहाँ रखी गई हर वस्तु मध्यप्रदेश के गौरवशाली अतीत की कहानी कहती है।
पर्यटकों और शोधार्थियों के लिए आकर्षण का केंद्र
संग्रहालय प्रतिदिन सुबह 10 बजे से शाम 5 बजे तक खुला रहता है। यहाँ आने वाले पर्यटक न सिर्फ़ ताम्रपत्र को देख सकते हैं, बल्कि संग्रहालय के विशेषज्ञों से इसके इतिहास के बारे में विस्तृत जानकारी भी प्राप्त कर सकते हैं।
निष्कर्ष: इतिहास की धुंध में छिपे सच को उजागर करता ताम्रपत्र
मंडला का यह ताम्रपत्र साबित करता है कि इतिहास कभी भी पूर्ण नहीं होता। नए साक्ष्य पुरानी मान्यताओं को चुनौती देकर हमें सत्य के और करीब ले जाते हैं। यह न सिर्फ़ कलचुरी वंश के गौरव का प्रतीक है, बल्कि भारत की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत की एक जीवंत मिसाल भी है। आने वाली पीढ़ियों के लिए यह धरोह इतिहास के प्रति जिज्ञासा जगाने का काम करेगी।
स्रोत: मध्यप्रदेश पुरातत्व विभाग, मंडला संग्रहालय के अभिलेखागार एवं शोध प्रपत्र।